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Sunday, January 3, 2010

श्री नाथ जी महराज

श्री नाथ जी महाराज जी का मंदिर



गावं के बड़े बुजुर्गों का कहना है की श्री नाथ जी महाराज एक परम तपस्वी संत थे जो सत्रहवी शताब्दी में गावं आये और जहाँ पे मंदिर है उसी स्थान पर रहने लगे। यह स्थान मठिया (साधुओं का मठ) के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ पहले से ही कृपा बाबा रहते थे, नाथ जी इनके साथ रहने लगे और गावं के लोगों को ज्ञान, गीता के उपदेश, रामचरित्रमानस पाठ सुनाते थे। नाथ जी के बारे में कहा जाता है की वे चमत्कारी और रहस्मय संत थे। नाथ जी नरहन गावं में अपने चमत्कारी शक्ति से कई बार लोगों की मदत की हैं। कुछ साल रहने के बाद नाथ जी जिन्दा समाधि लिये और समाधि के स्थान पर ही मंदिर का निर्माण हुआ । मंदिर में उनकी समाधि का ही पूजा होता है।





श्री नाथ जी महाराज जी के मंदिर का प्रांगण है , यहाँ पर गावं की गोष्ठी होती है और गोष्ठी में हर तरह के लोग (छोटे, बड़े), और बच्चे भी हिस्सा लेते है और सभी तरह मुद्दों पर विचार-विमर्श होती है जैसे- राजनीती, समाजिक,विज्ञान , मंदी, महंगाई, बेरोजगारी, खेल, फ़िल्म,जमींसे लेकर आसमान तक की बाते करते हैं । हर शनिवार के रात में कीर्तन,लोक गीत (चैता,सोठी, बिरहा, निर्गुण)आदि होता है । नाथ जी का यही प्रांगण है जो हमारे गावं की परम्परिक लोक गीत को बचाए हुए है।


सोमारनाथ स्वामी जी महाराज का मंदिर



Wednesday, December 16, 2009

हमारे गावं का दर्शनीय स्थल

दुर्गा जी (दशहरा २००९)

श्री नाथ जी महाराज

श्री नाथ जी के मंदिर का प्रांगन

श्री नाथ जी के चेला सोमारनाथ स्वामी जी का मंदिर


दुर्गा जी का एक रूप माँ भगवती जी का मंदिर

ठाकुर जी स्थान जहाँ राम जानकी और शंकर भगवान् के मंदिर हैं


शिव जी का मंदिर जो हमारे गावं के अंतिम छोर पे हैं



बालकिशुन बाबा का मंदिर


कलि जी का मंदिर

Tuesday, August 11, 2009

नरहन

मेरा गाँव भारत के सवा छः लाख गाँवो में से एक, बिहार के सीवान जिला के १५१९ गाँवो में से एक, रघुनाथपुर प्रखंड के ८५ गाँवो में से एक है। बिहार के दक्षिण छोर पे घाघरा नदी के तट पे बसा है। इस गाँव का नाम आदि काल में नरवल गढ़ हुआ करता था और यहाँ का राजा नल और रानी दमयन्ती राज करते थे। राजा नल के पोते नरवर के नाम पर नरवल गढ़ नरहन के नाम में बदल गया ।
गावं का पतन :-
राजा नल के अन्दर अहंकार समागया और वो धर्म का विरोध करने लगे, साधू सन्यासी, देवी-देवताओं का अनादर करने लगे जिसके चलते इस गावं का पतन हुआ।
गावं का पुनरउत्थान :-
महाराणा प्रताप के मृत्यु के बाद सिसोदिया वंश के कुछ राजपूत मेवार गढ़ छोड़ कर यहाँ आगये, और तिन गावों में (नरहन, सिसवन, कुसैला) बस गए और यहीं खेती-बारी करने लगे। आज भी तीनो गावों में भाईचारा और एक दुसरे के प्रति सम्मान है। इस तरह नरहन गावं सोलहवी शताब्दी में राजपूतों का गावं के रूप में उदय हुआ.

Wednesday, May 20, 2009

सॅटॅलाइट फोटो




मेरे गावं का सॅटॅलाइट मैप हैं जो उतर प्रदेश और बिहार के अन्तिम सीमा पे है